इस मुस्लिम लड़के ने मक्का को लेकर रचा ऐसा इतिहास की पूरी दुनिया में हो रही चर्चा, जाने
इंडोनेशिया के रहने वाले 28 साल के मोहम्मद खमीम 9000 किलोमीटर पैदल चल कर मक्का शरीफ पहुंचे हैं, और अब उनकी तारीफ दुनिया भर में हो रही है, उन्होने जब अपने सफर की शुरूआत की थी, तो कहा था कि मैं अल्लाह ताला के घर के रास्ते पर चल रहा हूँ, और मुझे उम्मीद है कि मैं एक दिन ज़रूर वहाँ पर पहुंचूंगा, और वह मक्का शरीफ पहुँच गए हैं। वह पूरे एक साल तक पैदल चले हैं,और कई देशों के रास्ते से मक्का शरीफ पहुंचे हैं, उन्हें अपने देश से मक्का पहुँचने में पूरे एक साल लग गए हैं। यह यात्रा पूरी होने पर लोग अब उन्हें मुबारकबाद दे रहे हैं।
मोहम्मद खमीम मलेशिया, थाईलैंड, म्यांमार (बर्मा), भारत, पाकिस्तान, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात के रास्ते पर पैदल चलते रहे हैं, और उनका सफर मक्का जाकर पूरा हुआ है। वह अब अपने सफर को याद करते हुये बताते हैं कि मैं दिन में रोज़े रखा करता था, और रात को सफर करता था।
वह बताते हैं कि मुझे जब आराम की ज़रूरत होती थी, तो मैं किसी मस्जिद में चला जाता था, कभी कभी किसी के घर में भी रुक जाया करता था, व्हाइन वह बताते हैं कि लोगों को जब मालूम होता था कि मैं मक्का शरीफ जा रहा हूँ, तो लोग मुझे खाने पीने की चीज़ें दे दिया करते थे।
इंडोनेशिया के रहने वाले 28 साल के मोहम्मद खमीम 9000 किलोमीटर पैदल चल कर मक्का शरीफ पहुंचे हैं, और अब उनकी तारीफ दुनिया भर में हो रही है, उन्होने जब अपने सफर की शुरूआत की थी, तो कहा था कि मैं अल्लाह ताला के घर के रास्ते पर चल रहा हूँ, और मुझे उम्मीद है कि मैं एक दिन ज़रूर वहाँ पर पहुंचूंगा, और वह मक्का शरीफ पहुँच गए हैं। वह पूरे एक साल तक पैदल चले हैं,और कई देशों के रास्ते से मक्का शरीफ पहुंचे हैं, उन्हें अपने देश से मक्का पहुँचने में पूरे एक साल लग गए हैं। यह यात्रा पूरी होने पर लोग अब उन्हें मुबारकबाद दे रहे हैं।
मोहम्मद खमीम मलेशिया, थाईलैंड, म्यांमार (बर्मा), भारत, पाकिस्तान, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात के रास्ते पर पैदल चलते रहे हैं, और उनका सफर मक्का जाकर पूरा हुआ है। वह अब अपने सफर को याद करते हुये बताते हैं कि मैं दिन में रोज़े रखा करता था, और रात को सफर करता था।
वह बताते हैं कि मुझे जब आराम की ज़रूरत होती थी, तो मैं किसी मस्जिद में चला जाता था, कभी कभी किसी के घर में भी रुक जाया करता था, व्हाइन वह बताते हैं कि लोगों को जब मालूम होता था कि मैं मक्का शरीफ जा रहा हूँ, तो लोग मुझे खाने पीने की चीज़ें दे दिया करते थे।
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